Monday, March 30, 2020

क्या आपको पता है, भगवान राम के असली वंशज कौन है?

 ये हैं प्रभु श्रीराम के वंशज, जो आज भी जिंदा हैं

भरत के दो पुत्र थे- तार्क्ष और पुष्कर। लक्ष्मण के पुत्र- चित्रांगद और चन्द्रकेतु और शत्रुघ्न के पुत्र सुबाहु और शूरसेन थे। मथुरा का नाम पहले शूरसेन था। लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। अत: दक्षिण कोसल प्रदेश (छत्तीसगढ़) में कुश और उत्तर कोसल में लव का अभिषेक किया गया।
राम ने कुश को दक्षिण कौशल, कुशस्थली (कुशावती) और अयोध्या राज्य सौंपा तो लव को पंजाब दिया। लव ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया। आज के तक्षशिला मेँ तब भरत पुत्र तक्ष और पुष्करावती (पेशावर) मेँ पुष्कर सिंहासनारुढ़ थे। हिमाचल में लक्ष्मण पुत्रों अंगद का अंगदपुर और चंद्रकेतु का चंद्रावती में शासन था। मथुरा में शत्रुघ्‍न के पुत्र सुबाहु का तथा दूसरे पुत्र शत्रुघाती का भेलसा (विदिशा) में शासन था।
राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसला को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था।
राजा लव से राघव राजपूतों का जन्म हुआ जिनमें बड़गुजर, जयास और सिकरवारों का वंश चला। इसकी दूसरी शाखा थी सिसोदिया राजपूत वंश की जिनमें बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) वंश के राजा हुए। कुश से कुशवाह राजपूतों का वंश चला।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लव ने लवपुरी नगर की स्थापना की थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान स्थित शहर लाहौर है। यहां के एक किले में लव का एक मंदिर भी बना हुआ है। लवपुरी को बाद में लौहपुरी कहा जाने लगा। दक्षिण-पूर्व एशियाई देश लाओस, थाई नगर लोबपुरी, दोनों ही उनके नाम पर रखे गए स्थान हैं।
कुश के वंशज कौन?
राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।
कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है। एक शोधानुसार कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो कुश महाभारतकाल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व।
इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। माना जाता है कि जो लोग खुद को शाक्यवंशी कहते हैं वे भी श्रीराम के वंशज हैं।
तो यह सिद्ध हुआ कि वर्तमान में जो सिसोदिया, कुशवाह (कछवाह), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गैहलोत (गुहिल) आदि जो राजपूत वंश हैं वे सभी भगवान प्रभु श्रीराम के वंशज है। जयपूर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग की राम के पुत्र कुश के वंशज है। महारानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 309वें वंशज थे।
इस घराने के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त 1921 को जन्में महाराज मानसिंह ने तीन शादियां की थी। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर था और माननसिंह ने तीसरी शादी गायत्री देवी से की थी। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से जन्में पुत्र का नाम भवानी सिंह था। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ। लेकिन दोनों का कोई बेटा नहीं है एक बेटी है जिसका नाम दीया है और जिसका विवाह नरेंद्र सिंह के साथ हुआ है। दीया के बड़े बेटे का नाम पद्मनाभ सिंह और छोटे बेटे का नाम लक्ष्यराज सिंह है।
मुसलमान भी राम के वंशज हैं?
हालांकि ऐसे कई राजा और महाराजा हैं जिनके पूर्वज श्रीराम थे। राजस्थान में कुछ मुस्लिम समूह कुशवाह वंश से ताल्लुक रखते हैं। मुगल काल में इन सभी को धर्म परिवर्तन करना पड़ा लेकिन ये सभी आज भी खुद को प्रभु श्रीराम का वंशज ही मानते हैं।
इसी तरह मेवात में दहंगल गोत्र के लोग भगवान राम के वंशज हैं और छिरकलोत गोत्र के मुस्लिम यदुवंशी माने जाते हैं। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि जगहों पर ऐसे कई मुस्लिम गांव या समूह हैं जो राम के वंश से संबंध रखते हैं। डीएनए शोधाधुसार उत्तर प्रदेश के 65 प्रतिशत मुस्लिम ब्राह्मण बाकी राजपूत, कायस्थ, खत्री, वैश्य और दलित वंश से ताल्लुक रखते हैं। लखनऊ के एसजीपीजीआई के वैज्ञानिकों ने फ्लोरिडा और स्‍पेन के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किए गए अनुवांशिकी शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला था।

Sunday, March 29, 2020

क्या कारण है कि बन्दर और बाकी के पशु पक्षी  बीमार नहीं  होते?

एक पुरानी कहावत है- बंदर कभी बीमार नहीं होता. ये कहावत तो आपने जरुर सुनी ही होगी? ख़ास बात ये की ये कहावत सौ प्रतिशत सही है. और यदि बंदर बीमार हो भी गया तो जिंदा नहीं बचेगा, मर जायेगा. क्या आपने कभी सुना है की किसी बंदर को हार्ट अटैक आ गया हो या फिर किसी चिड़िया को डायबिटीज हो गई? कोई भी जानवर न तो आयोडीन नमक खाता है और न ब्रश करता है फिर भी किसी को थायराइड नहीं होता और न दांत खराब होता है.
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क्या आपने कभी सोचा है की बंदर कभी बीमार क्यूँ नहीं होते? बंदर को कभी भी हार्ट अटैक, डायबिटीज , high BP , क्यों नहीं होता है? आपको जानकार हैरानी होगी कि बंदर का जो RH factor है वह सबसे आदर्श है. कोई डॉक्टर जब आपका RH factor नापता है तो वो बंदर के ही RH Factor से तुलना करता है, वह डॉक्टर आपको बताता नहीं यह अलग बात है.
विशेषज्ञों के अनुसार बंदर में कभी कोई बिमारी आ ही नहीं सकती. उसके ब्लड में कभी कॉलेस्टेरॉल नहीं बढ़ता, कभी ट्रायग्लेसाइड नहीं बढ़ती, न ही उसे कभी डायबिटीज होती है. शुगर को कितनी भी बाहर से उसके शरीर में इंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं. विशेषज्ञों का कहना है कि बंदर सबेरे सबेरे ही भरपेट खाता है. जो आदमी नहीं खा पाता है, इसीलिए उसको सारी बीमारियां होती है. सूर्य निकलते ही सारी चिड़िया, सारे जानवर खाना खाते हैं. जबसे मनुष्य इस ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर के चक्कर में फंसा, तबसे मनुष्य ज्यादा बीमार रहने लगा है.
वाग्भट जी ने आज से सैंकड़ों साल पहले ही कहा था की सुबह का किया हुआ भोजन सबसे अच्छा है. वाग्भट जी (Vagbhata Sutra) के अनुसार सुबह सूरज निकलने से ढाई घंटे तक यानि 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा 10 बजे तक आपका भरपेट भोजन हो जाना चाहिए और ये भोजन तभी होगा जब आप नाश्ता बंद करेंगे. यह नास्ता का प्रचलन हिंदुस्तानी नहीं है, ये अंग्रेजो की देन है, उन्होंने कहा कि रात्रि का भोजन सूर्य अस्त होने से पहले आधा पेट कर लें, तभी बीमारियों से बचेंगे.
वाग्भट जी (Vagbhata Sutra) के अनुसार सुबह सूर्य निकलने से ढाई घंटे तक हमारी जठराग्नि बहुत तीव्र होती है. हमारी जठराग्नि का संबंध सूर्य से है. हमारी जठराग्नि सबसे अधिक तीव्र स्नान के बाद होता है. स्नान के बाद पित्त बढ़ता है इसलिए सुबह स्नान करके भोजन कर लें तथा एक भोजन से दूसरे भोजन के बीच ४ से ८ घंटे का अंतराल रखें बीच में कुछ ना खाएं और दिन डूबने के बाद बिल्कुल न खायें.[1]
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साबुन से हाथ धोने पर  नष्ट हो जाता है कोरोना वाइरस ?

कोरोना साबुन से हाथ धोने से नष्ट नहीं होता मगर अलग थलग जरूर हो जाता है। अगर इसका वायरस गलती से आपके हाथ पर है ,तब साबुन इसको शरीर मै प्रवेश नहीं करने देता कैसे । आइए जानते है:
कोरोना का चित्र
थोरार्सन कहते हैं, वायरल स्व-विधानसभा प्रोटीन, आरएनए और लिपिड के बीच कमजोर "गैर-सहसंयोजक" संबंध पर आधारित है। ये एक साथ वेल्क्रो की तरह एक साथ काम करते हैं इसलिए आत्म-इकट्ठे वायरल कण को ​​तोड़ना बहुत कठिन है।
—अकेले पानी से धोने से त्वचा की सतह से वायरस को स्थानांतरित करने की संभावना कम होती है।
—साबुन का पानी आम पानी से बिल्कुल अलग होता है। साबुन में एमिफिल्स नामक वसा जैसे यौगिक होते हैं, जो वायरस झिल्ली में पाए जाने वाले लिपिड के समान होते हैं।
– साबुन हाथ की त्वचा और वायरस के बीच परत बनाने का काम भी करता है।
– WHO की सलाह से हाथ धोना
विश्व स्वास्थ्य संगठन दिन में कई बार 20 सेकेंड के लिए अपने हाथों को साबुन से धोने की सलाह देता है।
क्योंकि साबुन वायरस को घेरने वाली लिपिड परत को भंग करने में विशेष रूप से अच्छा है। यह वायरस के भीतर उन सभी अन्य कमजोर बांडों को भी मिटा देता है। एक बार ऐसा होने पर, वायरस प्रभावी रूप से अलग हो जाता है।
अगर आपकी हाथ की त्वचा रूखी है, तो साबुन से ठीक तरह अपने हाथों को धोएं ताकि वायरस का खतरा पूरी तरह खत्म हो सके।
– अपनी अंगुलियों के बीच और नाखुनों के अंदर भी ठीक प्रकार से साबुन लगाकर धोएं।
आप सेनिटाइजर भी इस्तेमाल कर सकते हैं,मगर जिसके अंदर 90% एल्कोहोल हो।क्योंकि इससे कम एल्कोहोल वाला सेनिटाइजर वायरस को अच्छे से दूर नहीं कर पाता ।

समुद्री रेत और रेगिस्तान की रेत को निर्माण कार्य के उपयोग में क्यों नहीं लाया जाता ?

झारखंड में बालू (रेत) घाटों की नीलामी भी एक चुनावी मुद्दा था। पूर्व की सरकार पर आरोप लगा कि उन्होंने झारखंड के बालू का ठेका मुंबई के ठेकेदारों को दे दिया। नदियों के तट से प्राप्त बालू ही सिर्फ निर्माण कार्यों में लगता है। अगर समुन्द्र के किनारों और रेगिस्तान में उपलब्ध प्रचुर रेत भी निर्माण कार्यों में लाया जाता तो शायद नदियों से प्राप्त रेत की कीमत काफी कम होती और विवाद ही नहीं होता।
रेगिस्तान की रेत का उपयोग निर्माण कार्य में नहीं किया जा सकता और इसके वैज्ञानिक कारण हैं। निर्माण कार्य में मोटी, मध्यम और महीन रेत का प्रयोग होता है। पवेमेंट, प्लास्टर और ढलाई के लिए अलग अलग बारीकी के रेत का प्रयोग होता है। समुन्द्र तट और रेगिस्तान की रेत निर्माण कार्य में प्रयोग होने वाली सबसे महीन रेत से भी बारीक होती है इस कारण निर्माण की इंजीनियरिंग जरूरत को पूरा नहीं कर पाती।
दूसरा कारण है इसकी चिकनाई। नदी से प्राप्त रेत खुरदरी होती है इस कारण आपस में और बाकी निर्माण सामग्री से घर्षण के कारण इसे मजबूती प्रदान करती है। रेगिस्तान की रेत अपनी बारीकी, गोलाई और चिकनाई के कारण बाकी निर्माण सामग्रियों को बांध कर नहीं रख पाती, इस कारण निर्माण के लिए अनुपयुक्त है। नदियों की रेत गोलाई में नहीं होती इसलिए इनकी सतह घर्षण के कारण निर्माण को ज्यादा मजबूती देती हैं।
समुन्द्र की रेत में एक और खामी भी है। क्लोराइड मौजूद होने के कारण यह निर्माण कार्य में प्रयुक्त स्टील और लोहे को तुरंत ही जंग लगा देती हैं। इन्हीं कारणों से रेगिस्तान और समुन्द्र की रेत का प्रयोग निर्माण कार्य में नहीं होता।

समुद्री मील क्या है ? क्यों समुद्र में दूरियों को  किलोमीटर से नहीं मापा जाता ?

समुद्र में हालात जमीन से बहुत अलग  होते हैं और बहुत तेजी से वहां का प्रतिरूप बदलता रहता है इस कारण समुद्र में दूरी नापने के लिए किलोमीटर मीटर मिल या कुछ भी ऐसे मात्रक उपयोग नही किए जा सकते जो दो स्थिर बिंदुओं के बीच की दूरी दिखाते हो क्योंकि समुद्र का कोई भी हिस्सा स्थिर नहीं रहता
लेकिन दूरी मापना तो जरूरी है इस कारण जलयान के पायलट एक बड़ी चालाक किस्म के मात्रक का उपयोग दूरी मापने के लिए करते हैं
असल में पूरी पृथ्वी को 360 डिग्री में बांटा गया है और दो तरह की रेखाएं धरती पर खींची गई है पहली रेखाएं जिन्हें देशांतर कहते हैं यह पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव को जोड़ती है
और दूसरी रेखाएं अक्षांश कहते हैं यह पूरी पृथ्वी को चारों ओर घूमती है आपने सुना होगा विषुवत रेखा कर्क रेखा और मकर रेखा यह सभी रेखाएं अक्षांश रेखाएं ही है
समुद्र में दूरी नापने के लिए अक्षांश रेखाओं का ही उपयोग किया जाता हैं दो अक्षांश रेखाओं में 1 डिग्री का अंतर होता है
समुद्री पायलटों ने इस 1 डिग्री के अंतर के 60 टुकड़े कर दिए और इसका एक टुकड़ा एक समुद्री मील के बराबर होता है
यानि अक्षांश रेखाओं के बीच की 1 मिनट कि दुरी एक समुद्री मील के बराबर होती है अगर आपको यह समझ नहीं आया तो नीचे दी गई सारणी को समझे
1/60 degree= 1 mint
1/60 mint = 1 second
तो इसका मतलब यह हुआ दो अक्षांश रेखाओं के बीच के 1 मिनट की दूरी की दूरी 1 समुद्री मील के बराबर होती है !

उम्मीद है कि  आप समझ गए होंगे  कि समुद्र में दूरियों को  किलोमीटर से नहीं मापा जाता!

क्या है सहारा रेगिस्तान का सच ? और ये कितने एरिया में फैला है ?

सहारा, अरबी भाषा में जिसका मतलब रेगिस्तान है, पूरे उत्तरी अफ्रीका में फैला हुआ है। सहारा दुनिया का सबसे बड़ा गैर-ध्रुवीय रेगिस्तान है, जोकि 9,000,000 वर्ग किमी के क्षेत्रफल यानि संयुक्त राज्य अमेरिका के बराबर है।
हालांकि सहारा, हवा में रेत के बहने से बने टीलों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसकी सतह का ज्यादातर हिस्सा हमदा यानि चट्टानी पठार से बना हुआ है। सहारा के प्रसिद्ध टिब्बा क्षेत्र पूरे रेगिस्तान की सतह का लगभग 15% ही कवर करते हैं और मुख्य रूप से उत्तर-मध्य क्षेत्र में स्थित हैं। अल्जीरिया और लीबिया के टिब्बा क्षेत्रों में, रेत की मोटाई भिन्न पाई जाती है क्योंकि हवा के कारण बने इन टीलों के ढेर कई सौ मीटर की ऊंचाई वाले हो सकते हैं लेकिन इनका आकार बदलता रहता है।
इस रेगिस्तान का विस्तृत भूभाग चट्टानी बंजर पहाड़ियों और घाटियों से घिरा हुआ है।
कई लोगों को यह एहसास नहीं है कि सहारा कभी एक उपजाऊ क्षेत्र हुआ करता था और इसमें कई मानव समुदाय फलते-फूलते थे। इसकी भीतरी सतह के एक अध्ययन से पता चला है कि उत्तरी अफ्रीका की प्राचीन जलवायु तेजी से मरुस्थल में बदल गई थी। नतीजतन यहां का आर्द्र, उपोष्णकटिबंधीय परिदृश्य मात्र कुछ ही वर्षों में ही रेगिस्तान में बदल गया था। यह घटना लगभग 4200 ई.पू. हुई थी। तब यह भूभाग उन्हीं रेगिस्तानी परिस्थितियों में लौट आया था, जो यहां 13,000 साल पहले हावी थीं।
जब जलवायु में परिवर्तन हुआ, सहारा सूखने लगा और वहां की वनस्पति खत्म हो गई। मिट्टी को पकड़ने के लिए कुछ भी नहीं होने के कारण वहां हवा से मिट्टी की सारी तलछट हट गई और सिर्फ रेत और चट्टानें शेष रह गईं।
संभावित कारण
मध्य-होलोसीन जलवायु के आधुनिक जलवायु में बदलने की शुरुआत पृथ्वी की कक्षा और पृथ्वी के अक्ष के झुकाव में बदलावों से हुई थी। लगभग 9,000 साल पहले, पृथ्वी का झुकाव वर्तमान 23.45 डिग्री की तुलना में 24.14 डिग्री था, और पेरीहेलियन (पृथ्वी की कक्षा का वह बिंदु जो सूर्य के सबसे करीब है), जुलाई के अंत में हुआ करता था, जोकि अब जनवरी की शुरुआत में होता है। उस समय, गर्मियों के दौरान उत्तरी गोलार्ध में अधिक धूप रहती थी, जिससे अफ्रीकी और भारतीय मानसून में गर्मी बढ़ जाती थी।
पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन धीरे-धीरे हुआ, जबकि उत्तरी अफ्रीका की जलवायु और वनस्पति में क्रमानुगत परिवर्तन अचानक से हुआ था। जर्मन शोधकर्ता क्लॉसेन और उनके सहयोगियों का मानना ​​है कि पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के भीतर विभिन्न प्रतिक्रिया तंत्रों ने कक्षीय परिवर्तनों द्वारा किए जाने वाले प्रभावों को बढ़ा दिया था। जलवायु, महासागरों और वनस्पतियों के प्रभाव को अलग-अलग और विभिन्न संयोजनों में मॉडलिंग करके, शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि महासागरों ने सहारा के मरुस्थलीकरण में बहुत ही मामूली भूमिका निभाई थी।
मजेदार तथ्य
मिस्र में वाडी-एल-हितान (व्हेल घाटी) में व्हेल की एक विलुप्त उप-जाति के जीवाश्म अवशेष पाए गए हैं। जाहिर है, यह घाटी 40-50 मिलियन साल पहले एक उथले समुद्री बेसिन का हिस्सा थी। मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया कई जीवाश्मों के संरक्षण और प्रकटीकरण, दोनों ही में सहायक रही है।

कोरोना से हमें क्या सबक मिलता है ? और हमें इससे क्या सीख  लेनी चाहिए ?

Australia Wildfires: 5,000 Camels Shot Dead In 5 Days In Drought ...Shooters get green light to cull 10,000 feral camels

भी कुछ  महीनों पहले आस्ट्रेलिया में 10000 ऊँटों को सिर्फ़ इसलिए मार दिया गया क्यूँकि उनके हिसाब से वो मीथेन गैस का उत्सर्जन कर रहे थे
जिससे जंगलों में आग लग रही है और पानी भी ज़्यादा पी रहे हैं
इस कारण मानव जाती ख़तरे में पड़ रही है
इंसानो को लगता है कि धरती पर जीने का हक़ सिर्फ़ मानव जाती को ही है
नहीं
इस धरती पर दूसरे भी प्राणी रहते हैं और वो भी जीना चाहते हैं
इंसान अपने स्वार्थऔर स्वाद के लिए किसी भी जीव को मार देता है
और अब जब कोरोना बीमारी आयी तो सबको मरने से डर लग रहा है
अगर इस बीमारी में सारी मानव जाती भी ख़त्म हो जाए तो अफ़सोस नहीं होना चाहिए क्यूँकि प्रकृति हमेशा न्याय ही करती है
इसलिए जीयो और जीने दो.
जयगुरुदेव :  Be vegetarian 🌱

Saturday, March 28, 2020

क्या सच में भारतीय रेल सेवाएं 14 अप्रैल से शुरू हो जाएगी ?




14 अप्रैल के बाद ट्रेन सेवाएं शुरु होने की संभावनाएं केवल 10% हैं। यह लाकडाउन और बड़ेगा, क्योंकि हमने इस लाकडाउन का अभी तक मजाक बना कर रखा है। 7 अप्रैल (14 वाँ दिन 25 मार्च के बाद) तक यदि नये केसेज आना कम होना शुरु हो जाएं, तभी 14 अप्रैल के बाद कुछ उम्मीद की जा सकती है। चीन ने भी बुहान में 2 महीने का लाकडाउन रखा था, तब वहाँ कंट्रोल हुआ।
वैसे चीन से सारे समाचार सेंसर होकर ही आते हैं। लेकिन यह सच है कि उसने सारे विश्व को इस बीमारी में फँसा कर और खुद उबरकर अपनी चाल चल दी है। अब देखना यह है कि विश्व इससे कैसे निपटता है। अभी हम भारतीय तो इसी में खुश हो रहे हैं कि हमारे यहाँ मौते सबसे कम हो रही हैं।
अभी कल देखा नहीं बड़े शहरों से बड़ी संख्या में गरीब मजदूरों का कैसे भीड़ में पलायन हो रहा है।
26/27 मार्च 2020 की रात में खाली मालगाड़ियोंं और खाली पैसिंजर ट्रेन के रैक, जो कि अपनी पेरेंट डिवीजनों और जोनों में लौट रहे थे, में से झाँसी रेलवे स्टेशन से 800 अनअधिकृत यात्री उतारे गये। तुरंत DRM, DM और अन्य रेल अधिकारी स्टेशन पहुँचे। उन यात्रियों का टेम्परेचर चैक कराया और आइसोलेशन में रखकर उनके भोजन की व्यवस्था की और उन्हें बसों और ट्रेनों से भी उनके गंतव्य भिजवाया। वह मजदूर भिण्ड, मुरैना और बुन्देलखण्ड इलाके के थे। 3 संदिग्धों को मेडीकल कालेज भिजवाया।
ऐसे ही छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लेबर पंजाब, दिल्ली, अहमदाबाद, मुम्बई, हैदराबाद से लौटने को तैयार हैं। कुछ तो पैदल भी चल दिए हैं।
इससे शहरों से गाँवों में संक्रमण फैलेगा और बस हम स्टेज 3 में पहुँच जाँयेंगे।
Note : ये मेरे अपने विचार और अनुमान है। सही उत्तर भविष्य के गर्त में है।  आपकी क्या राय है ,कमेंट करके जरूर बतायें !

क्या भारत में लॉकडाउन अवधि और भी  बढ़ सकती है? यदि हाँ  तो कितनी ?

बढ़ सकती नहीं बल्कि निश्चित रूप से बढ़ेगी संभवतः अप्रैल के अंत तक के लिए या 15 मई के आसपास तक के लिए और ऐसा मै क्यों बोल रहा हूं तो इसके लिए आपको कैलकुलेशन समझनी पड़ेगी, कैसे तो भाई वो ऐसे -

Step 1-अभी कारोना के नए मामले रोजाना बढ़ ही रहे है कम नहीं हो रहे है तो सबसे पहले तो इन बढ़ते हुए मामलों को पहले एक निश्चित लेवल पर लाकर रोकना होगा मतलब मान लीजिए उदाहरण के लिए आज 10 नए मामले आ रहे है, कल 20 नए और परसो तीस तो एक निश्चित दिन पर नए मामलों की संख्या स्थिर हो जाएगी और वो दिन आने में लगभग 14 से 21 दिन लग सकते है।

                  

           india
                   Coronavirus ceses

                           933
               Active case
                            827 

                            Deaths:

                             
20 

                Recovered:
                   84 

            Ceses/1M people:
                              0.7  


 Step 2-अब जब नए मामलों की संख्या स्थिर हो गई है तो कुछ दिन तक ये स्थिर रहेगी लगभग 7 दिन या उससे भी कम।
Step3-अब ये नए मामले घटना शुरू होंगे और शून्य तक पहुंचेंगे और इस प्रक्रिया ने भी लगभग 14 से लेकर 21 दिन लग सकते है।
Step 4-अब आप सोच रहे होंगे कि फिर तो लॉकडॉउन समाप्त हो जाएगा लेकिन नहीं अब आएगा ऑब्जर्वेशन पीरियड मतलब अब सुनिश्चित किया जाएगा कि कम से कम अगले 7 दिनों तक कोई नए मामले तो नहीं आने लगे।
अब अगर हमारी किस्मत सही रही और हमने लोकडाउन का सही से पालन किया होगा तो पूरा भारत कॉरॉना से मुक्त हो चुका होगा और lockdown हट जाएगा।
अब ऊपर वाले चारो पदो के दिनों को जोड़िए तो आप पाएंगे कि कम से कम 14+7+14+7=42 दिन और ज्यादा से ज्यादा 21+7+21+7=56 दिन।
Note- यह उत्तर 22 मार्च की दिनांक को आधार मानकर लिखा जा रहा है। दूसरी बात ये कि इस lockdown की अवधि कम या ज्यादा करना हमारे हाथ में है यदि हम सही से lockdown का पालन करेंगे तो 15 दिनों तक की कमी की जा सकती हैं और यदि लोग इस lockdownको सीरियसली नहीं लेंगे तो यह अवधि 15 से 30 दिन और बढ़ सकती है। ज्यादा जानकारी इस लिंक पर क्लिक करके देखे।

Note : यह उत्तर किसी को डराने के लिए नहीं लिखा गया है बल्कि इसका उद्देश्य आपको ये बताना है कि आप डेढ़ दो महीने के हिसाब से जो कुछ भी नई चीज सीखनी है उसकी सही योजना बना ले। दूसरी बात ये है कि यह उत्तर यह मानकर लिखा गया है कि इस उत्तर को पढ़ने वाले बहुत ही समझदार लोग है इसलिए इसे पढ़कर परेशान होने की जगह कुछ नया करने या सीखने की सोचे।

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