समुद्री रेत और रेगिस्तान की रेत को निर्माण कार्य के उपयोग में क्यों नहीं लाया जाता ?
झारखंड में बालू (रेत) घाटों की नीलामी भी एक चुनावी मुद्दा था। पूर्व की सरकार पर आरोप लगा कि उन्होंने झारखंड के बालू का ठेका मुंबई के ठेकेदारों को दे दिया। नदियों के तट से प्राप्त बालू ही सिर्फ निर्माण कार्यों में लगता है। अगर समुन्द्र के किनारों और रेगिस्तान में उपलब्ध प्रचुर रेत भी निर्माण कार्यों में लाया जाता तो शायद नदियों से प्राप्त रेत की कीमत काफी कम होती और विवाद ही नहीं होता।
रेगिस्तान की रेत का उपयोग निर्माण कार्य में नहीं किया जा सकता और इसके वैज्ञानिक कारण हैं। निर्माण कार्य में मोटी, मध्यम और महीन रेत का प्रयोग होता है। पवेमेंट, प्लास्टर और ढलाई के लिए अलग अलग बारीकी के रेत का प्रयोग होता है। समुन्द्र तट और रेगिस्तान की रेत निर्माण कार्य में प्रयोग होने वाली सबसे महीन रेत से भी बारीक होती है इस कारण निर्माण की इंजीनियरिंग जरूरत को पूरा नहीं कर पाती।
दूसरा कारण है इसकी चिकनाई। नदी से प्राप्त रेत खुरदरी होती है इस कारण आपस में और बाकी निर्माण सामग्री से घर्षण के कारण इसे मजबूती प्रदान करती है। रेगिस्तान की रेत अपनी बारीकी, गोलाई और चिकनाई के कारण बाकी निर्माण सामग्रियों को बांध कर नहीं रख पाती, इस कारण निर्माण के लिए अनुपयुक्त है। नदियों की रेत गोलाई में नहीं होती इसलिए इनकी सतह घर्षण के कारण निर्माण को ज्यादा मजबूती देती हैं।
समुन्द्र की रेत में एक और खामी भी है। क्लोराइड मौजूद होने के कारण यह निर्माण कार्य में प्रयुक्त स्टील और लोहे को तुरंत ही जंग लगा देती हैं। इन्हीं कारणों से रेगिस्तान और समुन्द्र की रेत का प्रयोग निर्माण कार्य में नहीं होता।
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