क्या है सहारा रेगिस्तान का सच ? और ये कितने एरिया में फैला है ?
सहारा, अरबी भाषा में जिसका मतलब रेगिस्तान है, पूरे उत्तरी अफ्रीका में फैला हुआ है। सहारा दुनिया का सबसे बड़ा गैर-ध्रुवीय रेगिस्तान है, जोकि 9,000,000 वर्ग किमी के क्षेत्रफल यानि संयुक्त राज्य अमेरिका के बराबर है।
हालांकि सहारा, हवा में रेत के बहने से बने टीलों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन इसकी सतह का ज्यादातर हिस्सा हमदा यानि चट्टानी पठार से बना हुआ है। सहारा के प्रसिद्ध टिब्बा क्षेत्र पूरे रेगिस्तान की सतह का लगभग 15% ही कवर करते हैं और मुख्य रूप से उत्तर-मध्य क्षेत्र में स्थित हैं। अल्जीरिया और लीबिया के टिब्बा क्षेत्रों में, रेत की मोटाई भिन्न पाई जाती है क्योंकि हवा के कारण बने इन टीलों के ढेर कई सौ मीटर की ऊंचाई वाले हो सकते हैं लेकिन इनका आकार बदलता रहता है।
इस रेगिस्तान का विस्तृत भूभाग चट्टानी बंजर पहाड़ियों और घाटियों से घिरा हुआ है।
कई लोगों को यह एहसास नहीं है कि सहारा कभी एक उपजाऊ क्षेत्र हुआ करता था और इसमें कई मानव समुदाय फलते-फूलते थे। इसकी भीतरी सतह के एक अध्ययन से पता चला है कि उत्तरी अफ्रीका की प्राचीन जलवायु तेजी से मरुस्थल में बदल गई थी। नतीजतन यहां का आर्द्र, उपोष्णकटिबंधीय परिदृश्य मात्र कुछ ही वर्षों में ही रेगिस्तान में बदल गया था। यह घटना लगभग 4200 ई.पू. हुई थी। तब यह भूभाग उन्हीं रेगिस्तानी परिस्थितियों में लौट आया था, जो यहां 13,000 साल पहले हावी थीं।
जब जलवायु में परिवर्तन हुआ, सहारा सूखने लगा और वहां की वनस्पति खत्म हो गई। मिट्टी को पकड़ने के लिए कुछ भी नहीं होने के कारण वहां हवा से मिट्टी की सारी तलछट हट गई और सिर्फ रेत और चट्टानें शेष रह गईं।
संभावित कारण
मध्य-होलोसीन जलवायु के आधुनिक जलवायु में बदलने की शुरुआत पृथ्वी की कक्षा और पृथ्वी के अक्ष के झुकाव में बदलावों से हुई थी। लगभग 9,000 साल पहले, पृथ्वी का झुकाव वर्तमान 23.45 डिग्री की तुलना में 24.14 डिग्री था, और पेरीहेलियन (पृथ्वी की कक्षा का वह बिंदु जो सूर्य के सबसे करीब है), जुलाई के अंत में हुआ करता था, जोकि अब जनवरी की शुरुआत में होता है। उस समय, गर्मियों के दौरान उत्तरी गोलार्ध में अधिक धूप रहती थी, जिससे अफ्रीकी और भारतीय मानसून में गर्मी बढ़ जाती थी।
पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन धीरे-धीरे हुआ, जबकि उत्तरी अफ्रीका की जलवायु और वनस्पति में क्रमानुगत परिवर्तन अचानक से हुआ था। जर्मन शोधकर्ता क्लॉसेन और उनके सहयोगियों का मानना है कि पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के भीतर विभिन्न प्रतिक्रिया तंत्रों ने कक्षीय परिवर्तनों द्वारा किए जाने वाले प्रभावों को बढ़ा दिया था। जलवायु, महासागरों और वनस्पतियों के प्रभाव को अलग-अलग और विभिन्न संयोजनों में मॉडलिंग करके, शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि महासागरों ने सहारा के मरुस्थलीकरण में बहुत ही मामूली भूमिका निभाई थी।
मजेदार तथ्य
मिस्र में वाडी-एल-हितान (व्हेल घाटी) में व्हेल की एक विलुप्त उप-जाति के जीवाश्म अवशेष पाए गए हैं। जाहिर है, यह घाटी 40-50 मिलियन साल पहले एक उथले समुद्री बेसिन का हिस्सा थी। मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया कई जीवाश्मों के संरक्षण और प्रकटीकरण, दोनों ही में सहायक रही है।
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